श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा लिरिक्स | SHRI MUNISUVRATANATH CHALISA LYRICS |
श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा लिरिक्स
| SHRI MUNISUVRATANATH CHALISA LYRICS |
अरिहंत सिद्ध आचार्य को करूँ प्रणाम,
उपाध्याय सर्वसाधू करते स्वपर कल्याण।
जिनधर्म, जिनागम, जिनमंदिर पवित्र धाम,
वीतराग की प्रतिमा को कोटि-कोटि प्रणाम।
जय मुनिसुव्रत दया के सागर,
नाम प्रभु का लोक उजागर।
सुमित्रा राजा के तुम नन्दा,
माँ शामा की आँखो के चन्दा।
श्यामवर्ण मूरत प्रभू की प्यारी,
गुणगान करे निशदिन नर नारी।
मुनिसुव्रत जिन हो अन्तरयामी,
श्रद्धा भाव सहित तुम्हें प्रणामी।
भक्ति आपकी जो निशदिन करता,
पाप ताप भय संकट-हरता।
प्रभू संकटमोचन नाम तुम्हारा,
दीन दुखी जीवों का सहारा।
कोई दरिद्री या तन का रोगी,
प्रभू दर्शन से होते है निरोगी।
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी,
भव भव की बाधा हरो हमारी।
यह संसार महा दुख दाई,
सुख नही यहां दुख की खाई।
मोह जाल में फंसा है बंदा,
काटो प्रभु भव भव का फंदा।
रोग शोक भय व्याधि मिटावो,
भव सागर से पार लगावो।
घिरा कर्म से चौरासी भटका,
मोह माया बन्धन में अटका।
संयोग-वियोग भव भव का नाता,
राग द्वेष जग में भटकाता।
हित मित प्रित प्रभू की वाणी,
स्वपर कल्याण करे मुनि ध्यानी।
भव सागर बीच नाव हमारी,
प्रभु पार करो यह विरद तिहारी।
मन विवेक मेरा अब जागा,
प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा।
नाम आपका जपे जो भाई,
लोका लोक सुख सम्पदा पाई।
कृपा दृष्टी जब आपकी होवे,
धन आरोग्य सुख समृधि पावे।
प्रभु चरणन में जो जो आवे,
श्रद्धा भक्ति फल वांछित पावे।
प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा,
संकट मोचन प्रभु नाम तुम्हारा।
सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी,
मन वच तन वंदना हमारी।
सम्मेद शिखर से मोक्ष सिधारे,
उद्धार करो मैं शरण तिहारे।
महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ,
सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र।
मनोज्ञ मन्दिर बना है भारी,
वीतराग की प्रतिमा सुखकारी।
चतुर्थ कालीन मूर्ति है निराली,
मुनिसुव्रत प्रभू की छवि है प्यारी।
मानस्तंभ उत्तग की शोभा न्यारी,
देखत गलत मान कषाय भारी।
मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता,
दुख संकट हरे देवे सुख साता।
शनि अमावस की महिमा भारी,
दूर-दूर से आते नर नारी।
मुनिसुव्रत दर्शन महा हितकारी,
मन वच तन वंदना हमारी।
उपाध्याय सर्वसाधू करते स्वपर कल्याण।
जिनधर्म, जिनागम, जिनमंदिर पवित्र धाम,
वीतराग की प्रतिमा को कोटि-कोटि प्रणाम।
जय मुनिसुव्रत दया के सागर,
नाम प्रभु का लोक उजागर।
सुमित्रा राजा के तुम नन्दा,
माँ शामा की आँखो के चन्दा।
श्यामवर्ण मूरत प्रभू की प्यारी,
गुणगान करे निशदिन नर नारी।
मुनिसुव्रत जिन हो अन्तरयामी,
श्रद्धा भाव सहित तुम्हें प्रणामी।
भक्ति आपकी जो निशदिन करता,
पाप ताप भय संकट-हरता।
प्रभू संकटमोचन नाम तुम्हारा,
दीन दुखी जीवों का सहारा।
कोई दरिद्री या तन का रोगी,
प्रभू दर्शन से होते है निरोगी।
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी,
भव भव की बाधा हरो हमारी।
यह संसार महा दुख दाई,
सुख नही यहां दुख की खाई।
मोह जाल में फंसा है बंदा,
काटो प्रभु भव भव का फंदा।
रोग शोक भय व्याधि मिटावो,
भव सागर से पार लगावो।
घिरा कर्म से चौरासी भटका,
मोह माया बन्धन में अटका।
संयोग-वियोग भव भव का नाता,
राग द्वेष जग में भटकाता।
हित मित प्रित प्रभू की वाणी,
स्वपर कल्याण करे मुनि ध्यानी।
भव सागर बीच नाव हमारी,
प्रभु पार करो यह विरद तिहारी।
मन विवेक मेरा अब जागा,
प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा।
नाम आपका जपे जो भाई,
लोका लोक सुख सम्पदा पाई।
कृपा दृष्टी जब आपकी होवे,
धन आरोग्य सुख समृधि पावे।
प्रभु चरणन में जो जो आवे,
श्रद्धा भक्ति फल वांछित पावे।
प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा,
संकट मोचन प्रभु नाम तुम्हारा।
सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी,
मन वच तन वंदना हमारी।
सम्मेद शिखर से मोक्ष सिधारे,
उद्धार करो मैं शरण तिहारे।
महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ,
सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र।
मनोज्ञ मन्दिर बना है भारी,
वीतराग की प्रतिमा सुखकारी।
चतुर्थ कालीन मूर्ति है निराली,
मुनिसुव्रत प्रभू की छवि है प्यारी।
मानस्तंभ उत्तग की शोभा न्यारी,
देखत गलत मान कषाय भारी।
मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता,
दुख संकट हरे देवे सुख साता।
शनि अमावस की महिमा भारी,
दूर-दूर से आते नर नारी।
मुनिसुव्रत दर्शन महा हितकारी,
मन वच तन वंदना हमारी।
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